Sunday, July 6, 2014

किरणों का अवकाश !

कभी कभी रात,
जनवरी से शुरू होती है
तो, ख़त्म होने का
नाम ही नहीं लेती।
किरणें शायद अवकाश पर हैं,
किन्तु
विस्मय की बात यह है कि
सूरज तो रोज़ निकलता है।
तेजहीन, ओजहीन,
चमकविहीन सूरज  …
रात के आँचल में
सहमा सा छिपा रहता है
ना उगने कि खबर मिलती है
ना छिपने का पता चलता है
और अब
आँखों को भी अँधेरे की
आदत हो गयी है  …
उजाले और रौशनी की बातें
कल्पना में रह गयीं हैं  ....  !


अर्चना ~ 06-07-2014




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