Thursday, April 17, 2014

तुम सुलझा दो ... !!

तुम सुलझा दो ...
मैं तो बस उलझाती जाऊँ !

इस छोर से उस छोर की,
कैसे कोई थाह मैं पाऊँ,
तुम पार लगा दो ...
मैं तो बस बहती जाऊँ !

दिवास्वप्न के मोहपाश में,
आशंकाओं से हताश मैं,
तुम समझा दो ...
मैं तो बस कुम्हलाती जाऊँ !

पथरीले रस्तों के आगे,
शायद खुशियों का आँगन हो,
तुम पहुँचा दो ...
मैं तो बस चलती जाऊँ !

मन का पंछी हॉले-हॉले,
टुकुर-टुकुर आँखों से बोले,
तुम पंख लगा दो ...
फिर, मैं तो बस उड़ती जाऊँ !

तुम सुलझा दो ...
मैं तो बस उलझाती जाऊँ !!

अर्चना ~ 17-04-2014

मैं हवा..... !!

हवा की तरह आती हूँ
छूती हूँ तुम्हें, पर
नज़र कहाँ आती हूँ

मन की उलझन से उदास
तुम हताश, बेहताश
और.………
मैं नापूँ, सारा आकाश !!

अर्चना ~ 17-04-2014