तुम सुलझा दो ...
मैं तो बस उलझाती जाऊँ !
इस छोर से उस छोर की,
कैसे कोई थाह मैं पाऊँ,
तुम पार लगा दो ...
मैं तो बस बहती जाऊँ !
दिवास्वप्न के मोहपाश में,
आशंकाओं से हताश मैं,
तुम समझा दो ...
मैं तो बस कुम्हलाती जाऊँ !
पथरीले रस्तों के आगे,
शायद खुशियों का आँगन हो,
तुम पहुँचा दो ...
मैं तो बस चलती जाऊँ !
मन का पंछी हॉले-हॉले,
टुकुर-टुकुर आँखों से बोले,
तुम पंख लगा दो ...
फिर, मैं तो बस उड़ती जाऊँ !
तुम सुलझा दो ...
मैं तो बस उलझाती जाऊँ !!
अर्चना ~ 17-04-2014
मैं तो बस उलझाती जाऊँ !
इस छोर से उस छोर की,
कैसे कोई थाह मैं पाऊँ,
तुम पार लगा दो ...
मैं तो बस बहती जाऊँ !
दिवास्वप्न के मोहपाश में,
आशंकाओं से हताश मैं,
तुम समझा दो ...
मैं तो बस कुम्हलाती जाऊँ !
पथरीले रस्तों के आगे,
शायद खुशियों का आँगन हो,
तुम पहुँचा दो ...
मैं तो बस चलती जाऊँ !
मन का पंछी हॉले-हॉले,
टुकुर-टुकुर आँखों से बोले,
तुम पंख लगा दो ...
फिर, मैं तो बस उड़ती जाऊँ !
तुम सुलझा दो ...
मैं तो बस उलझाती जाऊँ !!
अर्चना ~ 17-04-2014
खुबसुरत रचना ! गीत के रूप में
ReplyDeleteThanks Dayanand !
Deleteखुबसूरत गीत
ReplyDeleteThanks Ram !
Deletebahut accah hai,,,,,,,,,,,,,,,
ReplyDeleteThanks Arun !
Deletemumtaazaaaaa
ReplyDeleteAlok Thanks a Lot.... :)
DeleteIt is very beautiful what you have written. Its a lovely creation. I love it and would definitely love to read more of your work. I can see where you are coming from in this poem and it captured my mind and my heart.
ReplyDeleteThanks Nidhi.... Thanks a lot for these touchy lines.... ....
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