Chetna
Wednesday, June 18, 2014
इस रात की है, क्या प्रातः कोई ... ?
विचलित मन का
आहत क्रंदन,
कम्पित नभ,
तड़ित घन गर्जन।
मैं पिघलूँ,
बरसूँ अँखियों से,
सहमी सी,
निश्छल नदियों से।
डगमग निश्चय,
ना आस कोई,
इस रात की है,
क्या प्रातः कोई ... ?
अर्चना ~ 18-06-2014
1 comment:
alok
Sunday, June 22, 2014
aas na koi
hai is raat ki
kya subah-o - koi
..i thought so
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aas na koi
ReplyDeletehai is raat ki
kya subah-o - koi
..i thought so