सिर्फ तुम ही नहीं,
मैं भी थकता हूँ...
किरणों की तपती ज्वाला में,
सारा दिन मैं भी जलता हूँ...
किन्तु नियति के चक्रव्यूह में,
मुझको कोई अवकाश नहीं है।
अस्त यहाँ तो उदित वहाँ,
मेरे तन को विश्राम कहाँ....
मेरी व्यथा निहित मुझही में
मेरी कथा दृष्टित सृष्टि में
मैं सूरज दमकूँ कण कण में
उगूँ जहाँ प्रकाश वहीं है....!
अर्चना ~ 27-06-2014
मैं भी थकता हूँ...
किरणों की तपती ज्वाला में,
सारा दिन मैं भी जलता हूँ...
किन्तु नियति के चक्रव्यूह में,
मुझको कोई अवकाश नहीं है।
अस्त यहाँ तो उदित वहाँ,
मेरे तन को विश्राम कहाँ....
मेरी व्यथा निहित मुझही में
मेरी कथा दृष्टित सृष्टि में
मैं सूरज दमकूँ कण कण में
उगूँ जहाँ प्रकाश वहीं है....!
अर्चना ~ 27-06-2014
:-)
ReplyDeleteBecause I didn't find the like button.... B-)
ReplyDeleteThanks Pali Raj :)
Deleteअस्त यहाँ तो उदित वहाँ,
ReplyDeleteमेरे तन को विश्राम कहाँ....
उपरोक्त पंक्तियाँ कविता को सार्वभौमिकता देती हैं ! साधु !
धन्यवाद मुकेश जी। :-)
DeleteHave not seen a poem on Sun for some time. It is a good poem. Hope Sun too Feels Happy on being acknowledged.
ReplyDeleteThanks Anil!
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