तुम्हें....
जानने में वक़्त ज़ाया नहीं करना
और न पहचानने में...
यूँ ही नदी के बहाव सी मैं
और तुम अखंडित शिला से
बस छू के कदमों को
निकल जाऊंगी तीव्र कदमों से...
अर्चना
14-09-2014
जानने में वक़्त ज़ाया नहीं करना
और न पहचानने में...
यूँ ही नदी के बहाव सी मैं
और तुम अखंडित शिला से
बस छू के कदमों को
निकल जाऊंगी तीव्र कदमों से...
अर्चना
14-09-2014
बहुत ही सुन्दर । एक यादगार लम्हे सी कविता।
ReplyDeleteThanks Dayanand :)
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