ज़िन्दगी रुकी नहीं है,
और ना घड़ी सुइयां ही....।
कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर,
मोहल्ले में सजी झांकी में,
अब कोई मुझे कृष्ण नहीं बनाता।
वो बात और है, कि बनना मैं
राधा ही चाहती थी, पर....
सोनी गोरी थी, मैं सांवली
वो राधा बनी, और मेरे हाथों,
कृष्ण की बांसुरी ही लगी।
रसोई की स्लैप पे चढ़ के
छुप के लड्डू खाने पर
अब डांट भी नहीं पड़ती
ना लड्डू हैं और ना है
कोई डांटने वाला यहाँ
मुट्ठी में भरी रेत सी
फिसलती.......
उन्मुक्त ज़िन्दगी।
पर चाँद आसमान में,
आज भी चलता है
मेरे भागते क़दमों के साथ।
अर्चना ~ 28 - 08 - 20 13
और ना घड़ी सुइयां ही....।
कृष्ण जन्माष्टमी के पर्व पर,
मोहल्ले में सजी झांकी में,
अब कोई मुझे कृष्ण नहीं बनाता।
वो बात और है, कि बनना मैं
राधा ही चाहती थी, पर....
सोनी गोरी थी, मैं सांवली
वो राधा बनी, और मेरे हाथों,
कृष्ण की बांसुरी ही लगी।
रसोई की स्लैप पे चढ़ के
छुप के लड्डू खाने पर
अब डांट भी नहीं पड़ती
ना लड्डू हैं और ना है
कोई डांटने वाला यहाँ
मुट्ठी में भरी रेत सी
फिसलती.......
उन्मुक्त ज़िन्दगी।
पर चाँद आसमान में,
आज भी चलता है
मेरे भागते क़दमों के साथ।
अर्चना ~ 28 - 08 - 20 13
wah
ReplyDeleteThanks Shakil Sir.
Deleteheart touching!!!!!!!!
ReplyDeleteThanks Rachchu :)
DeleteYour "Zindagi ruki nahin" was a poignant read A. Growing up, being treated differently is something I have thought about a lot. A sense of deserting comes to mind. Not sure why. An assumption that grown ups do not need the kind of care a child does. I dont know...Your piece reminded me of my days as an unattached fella looking at the moon and getting nostalgic about my childhood. Beautifully penned.
ReplyDeleteThanks S. Don't know why, every new year added in my life makes me crave more to go back to those old childhood days. We had less facilities but rich life. There is a lot to write but thoughts take over the limited words..........
ReplyDeleteNice.
ReplyDeleteThanks Yatin.
ReplyDeleteपर चाँद आसमान में,
ReplyDeleteआज भी चलता ह..... so true..... I always get a flash back ftr reading ur post....watching sea waves n sky...wht an awesome feeling....
:) Thanks Amit.....
Deleteहम भी कहाँ रुकते हैं कभी़़़ बस चलते-चलते कभी-कभी मुड़ कर पीछे देख लेते हैं ।
ReplyDeleteSo true Dayanand !
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