Thursday, September 19, 2013

मम्मी की डायरी से ......



जिस वक़्त मम्मी की मृत्यु हुयी, उस वक़्त इतनी समझ नहीं थी की उनकी चीज़ों को ठीक से संभाल पाती। अब समझ आयी है तो काफ़ी कुछ पीछे छूट चुका है, फिर भी कुछ अवशेष हैं जो उनके आस पास होने का अहसास दिलाते हैं। जैसे कि उनकी ये लाल डायरी, जो डायरी कम और पिटारा ज्यादा है। भजन, नीति वचन, फ़ोन नम्बर्स, तरह तरह के पकवान,अचार और मुरब्बे  बनाने की विधियाँ, कवितायें, पते और भी न जाने क्या क्या.........।


जब मैं  हाई स्कूल में थी तो English Poetry की  जिस कविता  ने मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया था वह थी "IF" by "Rudyard Kipling". एक दिन मम्मी की डायरी उलटते-पलटते समय नज़र पड़ी एक कविता पर, ज़रा ध्यान दिया तो पाया यह कविता तो "IF" का हिंदी अनुवाद थी।  मेरी संवेदनशीलता तो मम्मी पर गयी है यह तो मुझे लगभग यकीन ही था पर मेरी कुछ साहित्यिक पसंद  मम्मी की पसंद से मेल खाती है यह जान कर मुझे एक विचित्र सी अनुभूति हुयी।

यह तो नहीं कह सकती कि "IF" का यह अनुवाद मम्मी ने ही किया होगा , हो सकता है उन्होंने किया हो और हो सकता है नहीं किया हो। मेरा इस सम्बन्ध में कुछ भी कह पाना मुश्किल होगा और अब उनकी अनुपस्थिति में पता भी नहीं लगाया जा सकता। पर आप सभी के साथ वह कविता बाँटना अवश्य चाहूँगी।
                                         

               यदि   

यदि संतुलन खो रहे हों सब जब, 
और दोष मढ़ रहे हों तुम पर, 
रख सको तब भी तुम अपने आपको संतुलित ;

यदि सब देख रहे हों जब संदेह दृष्टि से तुम्हें, 
विश्वास कर सको अपने पर तब भी तुम 
और दे सको सम्मान उनके संदेह को भी ; 

यदि कर सको प्रतीक्षा और कभी थको नहीं प्रतीक्षा से तुम,
अथवा फैलाया जा रहा हो जब झूठ तुम्हारे प्रति 
प्रवत्त न होओ तब भी तुम झूठ में ; 

यदि जब घृणा कर रहे हों सब तुमसे, 
दूर रख सको घृणा को हृदय से तब भी तुम,
और फिर भी न दिखो बहुत अच्छे, 
न बोलो बुद्धिमानों की भाषा ही; 

यदि स्वप्न तो लो तुम, 
स्वप्न से संचालित न होने दो निज जीवन को,
यदि आश्रय तो लो तुम विचार का, 
पर बनने  न पाए विचार तुम्हारा सर्वस्व; 

यदि भेंट हो तुम्हारी विजय और विनाश दोनों से, 
हो व्यवहार सम तुम्हारा परन्तु,
इन दोनों छलियों के प्रति; 

यदि तुम सहन कर सको उस सत्य को, 
जो किया जा रहा है पेश तोड़ मरोड़ कर तुम्हारे प्रति,
और जो बिछाया गया जाल है मूर्खों के लिए ;  

यदि वस्तुओं को तुम जिन्हें गढ़ा स्वयं तुमने अपने हाथों से, 
देख सको टूटा हुआ निज नेत्रों के सामने, और ,
जुट सको दोबारा नव निर्माण में नत मस्तक हुए ; 

यदि बना सको एक ढेरी, अपनी आज तक की सफलताओं की,
और दाव पर लगा सको उन्हें किसी एक सिद्धांत पर,
और हार जाओ सब कुछ पास था तुम्हारे जो कुछ भी, 
और कर सको प्रारंभ नए सिरे से अपने जीवन  को,
ना निकले आह एक भी अंतर से आघात पाकर ; 

यदि कर्त्तव्य के मार्ग पर अपने हृदय, नस, नाड़ी को, 
जब जवाब दे चुके हों वे, प्रवृत्त कर सको कर्म में, 
और तुम डटे रहो जब तक कि तुम में बचा न हो कुछ भी, 
सिवाय एक संकल्प के जो कहे तुम्हें "डटे रहो" ; 

यदि मिलो तुम भीड़ से और अडिग रहो निज सिद्धांत पर, 
यदि चलो तुम राजाओं के साथ, पर 
पृथक न करो सामान्य जन से अपने आप को; 

यदि शत्रु और प्रियजन आघात न पहुंचा सके तुम्हें, 
सब महत्वपूर्ण हों पर अति-महत्वपूर्ण न हो कोई तुम्हारे लिये;

यदि क्षमा का प्याला भर चूका हो जब 
संभाल सको कुछ पल के लिए अपने आपको, 
भूमंडल यह और यहाँ जो कुछ भी है तुम्हारा होगा, 

   और सबसे अधिक 

मेरे बच्चे ! इंसान बन जाओगे तुम, इंसान बन जाओगे तुम !!



~ मम्मी की डायरी से ( IF by Rudyard Kipling का हिंदी अनुवाद ) 









2 comments:

  1. I enjoyed it very much. IF only we could do half of these........ Half insan will be better than what many of us are now.

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  2. simplicity is defined in an awesome way.....loved it...

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