सुबह फिर सपने पुराने आये,
मेरी हैरानी को बढ़ाने आये ....
वक़्त जिन्हें पीछे छोड़ आया
मुझे वही चेहरे डराने आये ....
मेरी हैरानी को बढ़ाने आये ....
वक़्त जिन्हें पीछे छोड़ आया
मुझे वही चेहरे डराने आये ....
आँखें खुलीं तो मन उलझा था,
बैचेनी सोचे सच क्या था ....
पलकों के पीछे की दुनियाँ पे
रौशनी का परदा था ……
बैचेनी सोचे सच क्या था ....
पलकों के पीछे की दुनियाँ पे
रौशनी का परदा था ……
बंद आँखों की दुनियाँ भी अजीब होती है
दूर जितनी , उतनी ही करीब होती है ...
रौशनी में झाँकते, अंधेरों के साये
सपने पुराने, ख़याल नए लाये .... !
सुबह फिर सपने पुराने आये …… !
दूर जितनी , उतनी ही करीब होती है ...
रौशनी में झाँकते, अंधेरों के साये
सपने पुराने, ख़याल नए लाये .... !
सुबह फिर सपने पुराने आये …… !
अर्चना ~ 03-01-2014
sundar bhav
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