Monday, January 27, 2014

सर्दियों की शाम .....

सर्दियों की शाम जमा देती है,
खून, रूह और सोच को भी...
कोहरे से जंग लड़ती ठंडी आखें
जाने क्या ढूंढने को आमादा हैं,
काँपते होंठ और पथराये हाथ
ठण्ड कुछ ज्यादा है.....!

दूर उस बस्ती में उगा सूरज
काश, यूँही पिघला देता मुझे,
शाम के इस सिरे से.…
भोर के उस सिरे तक,
मैंने खुद को बाँध लिया है,
उन्मादित किरणों के मोहपाश में....!


अर्चना ~ 27-01-2014

4 comments:

  1. इन सर्द भरी शामों में कुछ गर्माहट का एहसास दिला रही है आपकी ये कविता।

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    1. :) Kaash Sardiyon ki raat mein bhi Sooraj Nikalta.....

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  2. सर्द हवाओं ने मेरे संग यूँ खेला,
    मौन मौसम ने अब रंग खोला

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    1. Thanks Sujit :) Your lines adding further beauty to my lines :)

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