मन की दुविधा..
तन की व्यथा..
मैं ना समझूँ ,
मैं ना मानूँ...
जीवन की अविरल धारा में
मैं तो बस बहना चाहूँ .... !!
कुछ सुख , कुछ दुःख
कुछ कम और ज्यादा कुछ
कुछ रस्ते हैं उबड़-खाबड़
कुछ मेरी कमज़ोर नज़र
पल में खो-दूँ उसको पाकर
जिसमें मैं बसना चाहूं ...!!
मैं प्रातः राग
मैं सांध्य गीत
मैं अश्रुधार
मैं सहज प्रीत
मेरा क्रंदन मेरा अभिमान
हास्य में निहित स्वाभिमान ..!!
मैं ना जानूँ कुछ हार-जीत
एकाकीपन मेरा मनमीत
मेरा संशय मेरा सम्बल
मुझमें निहित विद्रोह प्रबल
बन विहग तोड़ सब सीमाएं
उच्छन्द गगन में उड़ना चाहूँ ...!!
जीवन की अविरल धारा में
मैं तो बस बहना चाहूँ .......!!
अर्चना ~ 03-02-2014
जीवन की अविरल धारा में
ReplyDeleteमैं तो बस बहना जानूँ ...
motto of life
well written
न चाहूं मान दुनिया में, न चाहूं स्वर्ग को जाना...
ReplyDeleteजीवन की अविरल धारा में
मैं तो बस बहना जानूँ ... loved this poem....!
'मैं प्रातः राग' वाला लय काफी गजब का लगा।
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