विवेचना की उत्तेजना
झिंझोड़ देती है अस्तित्व
और रूह को भी,
आतंकित मस्तिष्क
का इन्कार,
संवेदनाओं का बहिष्कार
और इसके परे
ठंडा, सहमा, कुम्लाहा
बेजान दिल !!
धड़कने की कोशिश में
उड़ने लगा है ...
क्षितिज से बातें
करने लगा है....
कदम-दर-कदम
ज़िन्दगी की
एक नयी आपबीती.....।
अर्चना ~ 05-02-2014
झिंझोड़ देती है अस्तित्व
और रूह को भी,
आतंकित मस्तिष्क
का इन्कार,
संवेदनाओं का बहिष्कार
और इसके परे
ठंडा, सहमा, कुम्लाहा
बेजान दिल !!
धड़कने की कोशिश में
उड़ने लगा है ...
क्षितिज से बातें
करने लगा है....
कदम-दर-कदम
ज़िन्दगी की
एक नयी आपबीती.....।
अर्चना ~ 05-02-2014
इस शहर की किसी ओर किस छोर तक, भीड़ में कुछ देर तक हिस्सा बन जाते क्षणिक से सफर के !
ReplyDeleteBeautiful line Sujit.... Thanks for adding... :)
Delete"संवेदनाओं का बहिष्कार" ka jawaab nahiin.....
ReplyDeleteHamesha ki tarah bhaavnaon aur soch ka bahaav....shabdon mein khoobsoorti se baandha gaya.
Thanks Abid Sir ! you always encourage me :)
Deleteबहुत सुंदर... ख्यालों के माध्यम से मन की उहा-पोह को अच्छा लिखा है शब्दों में। बहुत खूब।।
ReplyDeleteThanks Abhilekh :)
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