Wednesday, August 10, 2016

समर्पण

रक्त के साथ
धमनियों में
प्रवाहित हो
निर्रथक है
तुम्हारा सानिध्य मिलना
या ना मिलना

मौन कड़ी है
शब्दों की अस्मिता
और भावनाओं 
की अखंडता 
के संघर्ष की, निश्चय ही 
समर्पण अतार्किक है !! 

~ अर्चना 
10-08-2016

1 comment:

  1. इक नूर से,आँखें चौक गयी
    देखा जो तुझे आईने में
    कोई नूर किरण होगी वो भी
    जो चुभने लगी है सीने में.--- #गुलज़ार

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