Wednesday, February 5, 2014

एक नयी आपबीती.....।

विवेचना की उत्तेजना
झिंझोड़ देती है अस्तित्व
और रूह को भी,
आतंकित मस्तिष्क
का इन्कार,
संवेदनाओं का बहिष्कार
और इसके परे
ठंडा, सहमा, कुम्लाहा
बेजान दिल !!
धड़कने की कोशिश में
उड़ने लगा है ...
क्षितिज से बातें
करने लगा है....
कदम-दर-कदम
ज़िन्दगी की
एक नयी आपबीती.....।

 अर्चना ~ 05-02-2014


Monday, February 3, 2014

जीवन की अविरल धारा में, मैं तो बस बहना चाहूँ !

मन की दुविधा..
तन की व्यथा..
मैं ना समझूँ ,
मैं ना मानूँ... 
जीवन की अविरल धारा में 
मैं तो बस बहना चाहूँ .... !! 

कुछ सुख , कुछ दुःख 
कुछ कम और ज्यादा कुछ
कुछ रस्ते हैं उबड़-खाबड़ 
कुछ मेरी कमज़ोर नज़र 
पल में खो-दूँ उसको पाकर 
जिसमें मैं बसना चाहूं ...!!

मैं प्रातः राग 
मैं सांध्य गीत 
मैं अश्रुधार 
मैं सहज प्रीत 
मेरा क्रंदन मेरा अभिमान 
हास्य में निहित स्वाभिमान ..!!

मैं ना जानूँ कुछ हार-जीत 
एकाकीपन मेरा मनमीत 
मेरा संशय मेरा सम्बल 
मुझमें निहित विद्रोह प्रबल
बन विहग तोड़ सब सीमाएं 
उच्छन्द गगन में उड़ना चाहूँ ...!!  

जीवन की अविरल धारा में 
मैं तो बस बहना चाहूँ  .......!! 

अर्चना ~ 03-02-2014