Sunday, August 31, 2014

In quest of Light on the land of Sleeping Sun !

Connecting Histories giving birth to the inhibitions. You drift apart and get soaked in your own pieces, drop by drop. Life is crawling through the melting dusky self and you are flying through the life. As if the sky has come down and the earth is hanging, up there beyond your reach. As if confusions are laughing at faded clarity and silence is dancing on words. You suddenly start swimming in the air and keep inhaling the water. You are not the same, you are not supposed to be the same. You are sitting behind the Church, counting the stars and drinking the moon, on the stairs like insane. 



You remain full of emptiness. Murmuring dry leaves on the green grass are getting eager to get wrapped around your cold feet. You ignore them and they ignore your preference. Everything is floating in its own pace arrogantly with no desire to control or hold. And that soft touch of dew drops burns your presence into absence. Still you exist to witness yourself merging into fumes of liberty. You see your own ashes encircling your existence and you smile at them for they are getting lost in the utter darkness while searching light on the land of sleeping Sun.  


Archana Sharma
31-08-2014

Saturday, August 9, 2014

परमिंदर का जन्मदिन .... !

आज 9 अगस्त है, परमिंदर का जन्मदिन। मैंने उसे सुबह से अभी तक शुभकामनाएं नहीं दी हैं। सोच रही थी उसको कुछ ऐसा तोहफा दूँ की वो चौंक जाये। काम की व्यस्तताओं ने कुछ ऐसा घेरा की कुछ नया नहीं कर पायी और सारा दिन यूँ ही निकल गया। कितने बड़े हो गये हैं अब हम, पहले एक दूसरे के लिये  सारे काम छोड़ दिया करते थे और अब काम के लिये एक दूसरे को भूल बैठे हैं। सोच कर एक पल को आत्मग्लानि होती है और दूसरे पल फिर वही व्यस्तता !

अब हमारी अभिव्यक्ति में वो बचपन वाली मासूमियत और समर्पण की भावना तो नहीं रही, जब की हम जन्मदिन के 10 दिन पहले से एक दुसरे के लिए ग्रीटिंग कार्ड्स बनाने बैठ जाते थे, अपनी पूरी तन्मयता और प्यार के साथ, लेकिन वो बचपन के मासूम तार आज भी हमें उतनी ही मजबूती से बांधे हुए हैं जितनी शिद्दत और प्यार से हमने अपने बचपन को सींचा था।

जब भी परमिंदर, मेरा, गोपाल या वजिंदर का जन्मदिन आता है तो मैं एक बार तो झा कॉलोनी वाले अपने घरों में जरूर ही पहुँच जाती हूँ जब हम अपनी छोटी सी दुनियाँ में अपनी तरह से, हमारा जन्मदिन मनाया करते थे। मम्मी नहीं थीं और परमिंदर की मम्मी काफी बीमार रहती थीं। हम दोनों की स्थिति लगभग एक जैसी थी। परमिंदर को तो लौकी की सब्जी काटना, आटा गूंदना भी आंटी के कहने से मैंने ही सिखाया था। दोनों हम उम्र थे पर मैंने हमेशा माँ का और परमिंदर ने बच्ची का रोल अदा किया था।

हम अपने जन्मदिन पर केक नहीं काटते थे, ना ही कॉलोनी के बच्चों को बुलाते थे। सुबह होते ही अपने हाथों से बना कार्ड और जेबख़र्ची से बचे पैसों से लाया गया तोहफा , जोकि बहुत ही जोड़-तोड़ के और दिमाग लगा के लाया जाता था, बर्थडे गर्ल को दिया जाता था। फिर हो जाती थी शुरू शाम की तैयारी।  मिठाई तो पापा लोग ले ही आते थे और हम बनाते थे शाम का मीनू। विदित ही है अर्चना शर्मा होतीं थीं हेड कुक और परमिंदर उनको असिस्ट करती थीं :) जो दो चार चीज़ें हमे बनानी आतीं थीं उन्ही को बड़े जोर शोर से बनाया जाता था।  घंटो रसोई में पसीने से लथ-पथ मैं और परमिंदर और हमारे अतिथि होते थे हमारे भाई , गोपाल और वजिंदर। कभी कभी पारुल और गुंजन भी आ जाते थे। पापा लोगों को तो हम उन्हीं कमरे सर्व कर देते थे।

हमारे खाने का मीनू, कुछ एक चीज़ों जैसे, छोले-भटूरे, ब्रेड रोल्स, साबूदाने की खिचड़ी, साबूदाने की टिक्की, बेसन के लड्डू, खीर या फिर छोले चावल तक ही सिमित होता था, पर उस वक़्त तो हम खुद को  किसी मास्टर शेफ से कम नहीं समझते थे। एक बार की बात है , परमिंदर का जन्मदिन था और हमारी सहेली पारुल को भी शाम को आना था। हमने शाम को साबूदाने की खिचड़ी और रायता बनाने का सोचा था। मैं तो साबूदाने की खिचड़ी बनाती रहती थी, पर परमिंदर ने कभी नहीं बनायीं थी। मैं ना जाने किस काम में व्यस्त थी, मैंने परमिंदर को साबूदाना भिगोने को बोल दिया और परमिंदर ने भिगो भी दिया। साबूदाने को बनाने के लिए कम से कम ३-४ घंटे पहले भिगोया जाता है। शाम को जब मैं साबूदाना बनाने चली तो भगोने से प्लेट हटाते ही मेरे होश उड़ गए।  भगोने में साबूदाना कहीं नज़र ही ना आये बस पानी ही पानी, साबूदाना नीचे था।  मेरा तो गुस्सा नाक पर , पारुल आने वाली थी। अब क्या किया जाय? परमिंदर डरी सहमी एक कोने में खड़ी थी , उसकी गलती नहीं थी।  उसे पता ही नहीं था की साबूदाना कैसे भिगोते हैं , उसे लगा जैसे चावल , दाल और छोलों को भिगोया जाता है वैसे ही साबूदाना भी भीगता होगा, दुगना-तिगना पानी डाल कर।  खैर अब कुछ नहीं हो सकता था , पारुल भी अब तक आ चुकी थी। मैंने किसी तरह पानी निथार कर उस साबूदाने को बनाया और हम सबने बड़े प्यार से उस लेही जैसे साबूदाने को खाया :)

इसी तरह परमिंदर के जन्मदिन का एक और किस्सा हम सबको आज भी हँसा देता है। हर बार की तरह हम अपने ही अंदाज़ में परमिंदर का जन्मदिन मना रहे थे। मैं, गोपाल, वजिंदर, परमिंदर, गुंजन और शायद नीरज भैया भी आ गए थे। हम किसी को इनविटेशन नहीं देते थे , बस जो भी आ जाए।  मेनू में इस बार छोले भटूरे थे। परमिंदर की पूरी कोशिश थी की उससे इस बार कोई गड-बड़ ना हो।  सब कुछ ठीक ठाक चल रहा था।  मैंने भटूरों का आटा दोपहर को ही गूंद कर रख दिया था, परमिंदर ने छोले सुबह ही भिगो दिए थे।  शाम को छोलों को उबलने रख दिया गया और एक सीटी के बाद गैस खतम , लो कर लो बात ! खैर हम सबने मिल कर नया सलेंडर लगाने की कोशिश की पर असफल रहे।  हार कर हमने फैसला किया की सारा सामान मेरे घर शिफ्ट किया जाय और खाना वहीं बनाया जाय। गोपाल, वजिंदर, परमिंदर , हम सब मिल कर सारा सामान, मेरे घर ले आये।

मैंने परमिंदर को छोलों वाले कूकर को गैस पर रखने को कहा और हम सब कूलर में बैठ गप्पें मारने लगे।  परमिंदर भी कूकर को गैस पर रख कर हमारे पास आ कर बैठ गयी। बातों बातों में समय का पता ही ना चला, अचानक लगभग 45 मिनट्स के बाद मुझे याद आया की कूकर में सीटी तो अभी तक आई नहीं है, मैं झट से उठी रसोई की तरफ भागी और देख कर भोंचक्की रह गयी। कूकर गैस पर रक्खा था पर गैस जल नहीं रही थी। मैंने परमिंदर को आवाज़ लगायी पूछा , "तूने गैस नहीं जलायी थी क्या ?" परमिंदर का ज़वाब था "गुड़िया तूने कूकर को गैस पर रखने को कहा था , गैस जलाने को नहीं। " मैं अपने सर पर हाथ रख कर वहीं बैठ गयी  … ऐसी थी मेरी परमिंदर भोली और प्यारी , जो इतनी सी बात नहीं समझ पायी कि कूकर को गैस पर रखने के लिए कहते हैं तो इसका मतलब होता है गैस को जलाकर उस पर कूकर रखना :) कोई उससे पूछे भला , सारा सामन उसके घर से मेरे घर शिफ्ट करने का मतलब ही क्या अगर कच्चे छोलों से भरे कूकर को गैस पर बिना गैस जलाये रख दिया जाय  .... :)

खैर पहले परमिंदर ने मुझ से डाँट खायी और फिर हम सब खूब हँसे :) उस रात हमें खाना खाते खाते 12.30 बज गए। अब तो बस यादें रह गयीं हैं। इन बातों को भी 18-20 साल हो गए होंगे। समय तो जैसे पंख लगाये उड़ा ही चला जा रहा है। लेकिन मैं भी जिद्दी हूँ , एक-एक लम्हा आँखों में कैद कर रक्खा है, जब भी जी चाहता है भीगी आँखों से दोबारा जी लेती हूँ। सालों हो गए हैं एक दूसरे का जन्मदिन साथ मनाये , कच्चे छोलों के जायके के साथ भटूरे खाये  .... सालों हो गये एक दूसरे के लिये रसोई में पसीने बहाये  …… सालों हो गये एक दूसरे को गले लगाये  ……

प्रिय परमिंदर

उस पार है
उम्मीदों का आसमान
उजालों की मुस्कान
कल्पनाओं की उड़ान
और इस पार मैं
मेरी चमकतीं आँखें
उल्लसित मन
और ढेरों शुभकामनायें
तुम्हारी प्रगति और विकास के नाम
आशा और विश्वास के नाम
हर्ष और उल्लास के नाम
जन्मदिन की शुभकामनायें !

प्यार के साथ

अर्चना ~ 09-08-2014